Thursday 11 October 2012


ॐ का महत्त्व


सृष्टि के आरम्भ में सर्वप्रथम जो शब्द
उत्पन्न हुआ वह ॐ ही था
...
। सनातन धर्म
के समस्त श्लोक एवं मंत्र का आरम्भ
इसी एकाक्षरी मंत्र से होता है
। ॐ वह
सात्विक शक्ति है , जिसके जाप के समय
होने वाले स्पंदन से शरीर के अन्दर
व्याप्त सभी प्रकार के रोगाणुओ का नाश
हो जाता है ।

ॐ का बारम्बार उच्चारण
हमारे लिए कई प्रकार से
उपयोगी होता है ।

हमारे आसपास के
वातावरण को रमणीय बनाने एवं जीवन में
खुशहाली लेन के लिए भी इसका जाप और
ध्यान उपयोगी है ।

ॐ मंत्र का उच्चारण
शरीर में नयी उर्जा विकसित करता है
एवं शरीर के विभिन्न अंगो को स्पंदित
करता है ।

प्रणव मंत्र ॐ सृष्टि के आरम्भ
में सर्वप्रथम उत्पन्न हुआ एकाक्षरी मंत्र
है ।

प्र - अर्थात प्रकृति से उत्पन्न
संसार रूपी महासागर तथा प्रणव इसे
पार करने के लिए नाव के समान है ।


इसीलिए ओमकार को प्रणव कहते है ।


अक्षर का अर्थ जिसका कभी क्षरण न
हो ।

ऐसे तीन अक्षरोँ - अ उ और म से
मिलकर बना है ऊँ ।
माना जाता है
कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड से सदा ऊँ
की ध्वनी निसृत होती रहती है ।

हमारी और आपके हर श्वास ऊँ
की ही ध्वनि ही निकलती है ।

यही हमारे - आपके श्वास
की गति को नियंत्रित करता है ।

माना गया है कि अत्यन्त पवित्र और
शक्तिशाली है ऊँ । किसी भी मंत्रसे पहले
यदि ऊँ जोड़ दिया जाए तो वह
पूर्णतया शुद्ध और शक्ति - समपन्न
हो जाता है ।

किसी देवी - देवता , ग्रह
या ईश्वर के मंत्रोँ के पहले ऊँ
लगाना आवश्यक होता है ,

जैसे - श्रीराम
का मंत्र - ऊँ रामाय नमः

। विष्णु
का मंत्र - ऊँ विष्णवे नमः

। शिवका मंत्र
ऊँ नमः शिवाय प्रसिद्ध है ।


कहा जाता है कि ऊँ से रहित कोई मंत्र
फलदायी नही होता , चाहे
उसका कितना भी जाप हो । मंत्र के रूप
मेँ मात्र ऊँ ही पर्याप्त है ।


माना जाता है कि एक बार ऊँ का जाप
हजार बार किसी मंत्र के जाप से
महत्वपूर्ण है ।

जिनकी स्मरण
शक्ति कमजोर हो , पढाई में कमजोर
विद्यार्थी और अधिक दिमाग और
बोलचाल का करने वाले व्यक्तियों के लिए
यह सर्वोत्तम उपासना ह

ै । प्रात : काल
पूर्व दिशा की ओर मुह कर , ज्ञान
मुद्रा में बैठ कर अधर खुली आँखों से
केसरी रंग के महामंत्र ॐ का ध्यान
अपनी दोनों भौहो के बीच में करे ।

कम से
कम 108 बार इसी विधि से ॐ
का उच्चारण करे ।

इस उपासना से
बुद्धि का विकास होता है , वाणी प्रखर
होती है , ओजस्विता आती है ।

जाप के
बाद आँखों को धीरे से बंद कर ,
अपनी हथेलियों को रगड़कर समस्त चहरे
पर लगाने से अंग पुष्ट होते है एवं शारीर
में कांति आती है ।

जिनके यंहा धन
का आभाव हो , ऋण की अधिकता हो ,
दरिद्रता , व्यापार में हनी से परेशान
हो , धन रुकता नहीं हो तथा कोई कार्य
करने में बाधा आती हो , उन्हें पीले वस्त्र
धारण कर ॐ का ध्यान करना चाहिए ।

यह कार्य दिनभर में
कभी भी किया जा सकता है ।

किन्तु
सूर्योदय और सूर्यास्त के समय किया जाये
तो ज्यादा फलदायक होता है ।


प्रतिदिन 15 मिनिट तक यह जाप करने से
दरिद्रता और कामो में आने वाली रूकावटे
दूर होने लगाती है ।


ब्रह्माण्डका नाद है एवं मनुष्यके अन्तरमेँ
स्थित ईश्वरका प्रतीक

। सबके हृदयस्थ
इस ऊँ प्रतीक को बार - बार प्रणाम ।

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